ROE Meaning in Hindi

roe meaning in hindi

शेयर बाजार में किसी विशेष स्टॉक में निवेश से पहले अलग-अलग पैरामीटर को देखने और जांचने की आवश्यकता होती है। उन सभी पैरामीटर में से ROE एक बहुत महत्वपूर्ण पैरामीटर है जो आपको आपकी द्वारा किये हुए निवेश पर होने वाले रिटर्न की जानकारी देता है। इस लेख में हम जानेंगे की ROE meaning in hindi और किस तरह से आप इससे एक सही स्टॉक में निवेश करने का फैसला ले सकते है।

ROE Meaning in Share Market in Hindi 

जब भी आप शेयर मार्केट में इक्विटी (equity meaning in hindi) में निवेश करना चाहते है उसके लिए आप एक ऐसी कंपनी का चयन करना चाहते है जिससे आप आने वाले समय में ज़्यादा रिटर्न प्राप्त कर सके और इसके लिए उपयोग होता है ROE जो आपको कंपनी की हेल्थ के बारे में बताता है

सरल भाषा में ROE आपको ये जानकारी देता है कि आप जिस कंपनी में निवेश कर रहे है वह आपको कितना रिटर्न देने की क्षमता रखती है। ROE की गणना करने के लिए एक निवेशक के लिए ज़रूरी है कि वह कंपनी की नेट इनकम और शेयरहोल्डर इक्विटी की जानकारी प्राप्त करे।

नेट इनकम कंपनी की वह इनकम है जो कंपनी के सभी तरह के खर्चे, इंटरेस्ट और टैक्स देने के बाद बच जाती है, दूसरी तरफ शेयरहोल्डर इक्विटी बिज़नेस की नेट वर्थ (networth) की जानकारी देता है। इसका तातपर्य है की एक कंपनी ने अपने बिज़नेस में कितना इन्वेस्ट किया हुआ है। 

इसकी जानकारी आप आसानी से बैलेंस शीट (balance sheet in hindi) से प्राप्त कर सकते है जिसमे शेयरहोल्डर इक्विटी तीन भागो में बाटी गयी है: कॉमन स्टॉक, प्रीफरेंस स्टॉक्स (preference share meaning in hindi), और रेटेनेड अर्निंग।

अब वापिस आते है रिटर्न ऑन इक्विटी पर जिससे एक निवेशक और कंपनी के प्रमोटर कंपनी की परफॉरमेंस की जानकारी प्रदान करता है, ये वैल्यू परसेंटेज में होती है और इसकी मदद से काफी निवेशक कंपनी में निवेश करने का निर्णय लेते है

तो अगर आप शेयर मार्केट से करोड़पति कैसे बने की ओर देख रहे है तो ज़रूरी है की उसके लिए कंपनी की ROE और दूसरे पैरामीटर के और देखे और उसके अनुसार निवेश करे

अब काफी बार निवेशक Return on Equity और Rate of Interest के बीच भ्रमित रहते है, लेकिन ये दोनों अलग-अलग पैरामीटर्स है

एक तरफ जहां Return on Equity ये जानकारी देता है कि शेयर मार्केट में किस तरह से कंपनी इन्वेस्टर के निवेश किये गए फण्ड का उपयोग कर रही है, दूसरी तरफ Rate of Interest से एक निवेशक ये जान सकता है कि एक निवेशक किसी भी असेट में निवेश करने पर कितना मुनाफा कमा सकते है। 


ROE फार्मूला 

ROE की गणना के लिए हमें नेट इनकम (Profit after Tax) में टोटल इक्विटी से भाग देने की जरुरत होती है।

 ROE की गणना के लिए उपयोग किया जाने वाला फार्मूला इस प्रकार है:

रिटर्न ऑन इक्विटी  = नेट इनकम / टोटल इक्विटी 

यहाँ पर ये जानना ज़रूरी है की ये एक एवरेज वैल्यू की जानकारी देता है क्योंकि हर एक शेयरधारक के पास अलग इक्विटी की हिस्सेदारी होती है। लेकिन फिर भी निवेश करने से मिलने वाले रिटर्न को जांचने के लिए ROE काफी आसान टूल है। इंडस्ट्री में कंपनी की ROE से तुलना करने पर हमें कंपनी के सही तरीके से आकलन करने में मदद कर सकते है। इससे हमें यह भी पता चलता है की कंपनी मैनेजमेंट कैसे इक्विटी से फाइनेंसिंग करके अपने व्यापर को बढ़ा रही है। 

समय के किसी कंपनी के ROE बढ़ने से हमें यह पता चलता है की कंपनी अपने शेयरधारक वैल्यू की बढ़ा रही है और इससे यह जानकारी मिलती है की कंपनी अपने लाभ बढ़ाने के लिए अपनी संपत्ति अच्छे से उपयोग कर रही है।

अब क्योंकि इसकी गणना प्रतिशत में होती है इसलिए ये वैल्यू हमेशा पॉजिटिव होती है। समझने के लिए मान लेते है कि आपके निवेश किए गए 5 रुपए से कंपनी 1 रुपए की नेट इनकम बनाते है तो यहाँ पर ऊपर दिए गए फॉर्मूला के अनुसार ROE की वैल्यू 20% होगी।

समय के साथ ROE  के कम होने से हमें यह पता चलता है की मैनेजमेंट अच्छा निर्णय नहीं ले रही है और अपनी संपत्ति का अच्छे से उपयोग नहीं कर रही है। 

ROE  कैलकुलेटर 

रिटर्न ऑन इक्विटी कैलकुलेटर से कंपनी के ROE की गणना करने में मदद मिलती है। इसे कैलकुलेट करने के लिए अलग-अलग पैरामीटर की मदद से गणना करते हैं।

मान लीजिए की किसी कंपनी के पैरामीटर इस प्रकार हैं। 

  • नेट इनकम = 7000 रुपए 
  • शेयरहोल्डर इक्विटी = 25000 रुपए 

इस मामले में ROE = (7000/25000) * 100% = 28%


ROE की सीमाएं 

जैसाकी कंपनी की वित्तीय स्थिति को मापने के लिए ROE को बेहतर वित्तीय उपकरण माना जाता है। लेकिन ROE की क्या वैल्यू सही मानी जाती है, ये एक ऐसा सवाल है जो एक निवेशक जानने के लिए इच्छुक रहता है। 

ऐसा माना जाता है की ROE की वैल्यू अगर 25% हो तो उस कंपनी में निवेश कर आप अच्छा रिटर्न प्राप्त कर सकते है और ज़्यादातर, 15% से ऊपर का ROE कंपनी का एक अच्छा प्रदर्शन देता है।  

लेकिन क्या ज़्यादा ROE हमेशा बेहतरीन परिणाम देता है, या कम ROE वैल्यू कंपनी में निवेश न देने का संकेत है?

खैर ऐसा हो सकता है लेकिन हर बार नहीं। कई बार अगर कंपनी में निवेश कर रहे हो तो कंपनी के लम्बे समय के ROE की जानकारी प्राप्त करे और एक सही विशेलषण कर उसमे निवेश करें। 

उदाहरण के लिए मान लेते है कि किसी कंपनी को किसी एक साल में ज़्यादा मुनाफा हुआ लेकिन उसने कमाई हुए रकम किसी नयी मशीन या ग्रोथ के लिए इन्वेस्ट की, तो यहाँ पर कुछ समय के लिए या एक तिमाही रिपोर्ट ROE की वैल्यू कम हो सकती है। 

दूसरी तरफ ROE की वैल्यू दो वजह से बढ़ सकती है और एक निवेशक को गलत जानकारी प्रदान कर सकता है, जैसे की:

अगर शेयरहोल्डर इक्विटी कम हो तो उससे ROE वैल्यू ज़्यादा होगी

दूसरी तरफ अगर कंपनी ने किसी तरह का क़र्ज़ लिया है तो उससे उस कंपनी की नेट इनकम बढ़ जाएगी जिसका असर ROE की वैल्यू में देखने को मिलेगा। 

लेकिन इन दोनों स्थितियों में ROE की वैल्यू बनावटी होती और एक निवेशक को बहका सकती है और एक गलत निर्णय की ओर ले जा सकती है। 

इसलिए एक निवेशक को मौलिक विश्लेषण करते समय ये समय और कंपनी के मुनाफे के साथ-साथ खर्चो की भी पूरी जानकारी प्राप्त कर, किसी निर्णय पर पहुंचना चाहिए। 


ROE के फायदे 

हालांकि ROE की सही गणना बहुत सारे पहलूओं पर निर्भर करती है लेकिन एक निवेशक के लिए ये काफी जानकारियां लेकर आता है, जैसे कि:

  • विकास दर (Growth Rate) का आकलन –  Return on Equity का उपयोग कंपनी के विकास दर पता करने के लिए कर सकते हैं। इस अनुपात से आप कंपनी के स्टॉक और डिविडेंड के ग्रोथ का पता कर सकते हैं। 
  • कंपनी के विकास की स्थिरता का आकलन – ROE के उपयोग से कंपनी के ग्रोथ की स्थिरता को मापने में मदद करता है खासकर उस मामले में जब आप किसी स्टॉक का चुनाव कर लेते हैं जो मार्केट की अस्थिरता में नुकसानदायक होता है। ROE से आपको कंपनी की वास्तविक स्थिति की सही जानकारी मिलती है। पिछले कुछ वर्षों के ROE की जांच से आप अनुमान लगा सकते हैं की कंपनी की स्थिति क्या है।
  • प्रतिद्वंदी कंपनी के ROE द्वारा तुलना – ROE के उपयोग से आप कंपनी के वित्तीय स्थिति की जानकारी से आप उस छेत्र के अन्य कंपनी की तुलना कर आप कंपनी के वैल्यू का अनुमान लगा सकते हैं। 

निष्कर्ष 

किसी कंपनी के शेयर में निवेश करने से पहले ROE की जाँच करना महत्वपूर्ण होता है। पिछले कुछ वर्षों के ROE देखकर आप कंपनी के प्रदर्शन का पता चलता है।  रिटर्न ऑन इक्विटी बहुत महत्वपूर्ण वित्तीय अनुपात है आपको नकारात्मक ROE में नहीं निवेश करना चाहिए। 

ROE की वैल्यू ज्यादा से ज्यादा होनी चाहिए जिससे कंपनी के निवेशकों के लिए ज्यादा फायदेमंद होती है। 

और एक अच्छे ROE से कंपनी की मैनेजमेंट के बेहतर होने का भी पता चलता है।

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