शेयर मार्केट में बहुत से लोगो के मन में सवाल आता है, क्या स्टॉक मार्केट को प्रेडिक्ट किया जा सकता है? यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब ना तो पूरी तरह से हां है और ना ही पूरी तरह न है। मार्केट को प्रेडिक्ट किया जा सकता है लेकिन कोई भी मार्केट में 100% सही नहीं हो सकता है।
आज हम Stock Market Prediction in Hindi लेख में समझेंगे कि स्टॉक मार्केट प्रेडिक्शन क्या है और स्टॉक मार्केट को कैसे प्रेडिक्ट किया जा सकता है।
स्टॉक मार्केट प्रेडिक्शन क्या है?
स्टॉक मार्केट प्रेडिक्शन एक ऐसा तरीका है जिससे ट्रेडर और निवेशक किसी भी स्टॉक, सेक्टर या मार्केट की फ्यूचर वैल्यू का अनुमान लगाते है। यह प्रेडिक्शन ट्रेडर और निवेशक अपने फंडामेंटल एनालिसिस या टेक्निकल एनालिसिस के आधार पर करते है।
जहां निवेशक देश, दुनिया की अर्थव्यवस्था और कंपनी के फंडामेंटल की रिसर्च के आधार पर स्टॉक प्राइस को प्रेडिक्ट करता है। वही दूसरी तरफ ट्रेडर स्टॉक का ट्रेंड, प्राइस मूवमेंट और टेक्नीकल चार्ट के आधार पर स्टॉक या मार्केट को प्रेडिक्ट करता है।
इसको आसान बनाने के लिए ज़रूरी है कि आप स्टॉक मार्केट में सेक्टर और उसकी विशेषताओं को पूरी तरह से समझे। इसके लिए शुरुआत करें share market me kitne sector hote hai के साथ।
इससे आप एक सूची तैयार कर अपने स्टॉक में निवेश या ट्रेड करने का निर्णय ले सकते है।
स्टॉक मार्केट को प्रेडिक्ट कैसे करे?
शॉर्ट टर्म में स्टॉक की प्राइस मूवमेंट स्पेकुलेशन के आधार पर चलती है, अगर खरीददार ज्यादा होंगे तो शेयर की प्राइस बढ़ेगी, इसी तरह अगर शेयर को बेचने वाले ज्यादा होंगे तो शेयर प्राइस कम होती चली जायेगी।
शेयर बाजार में निवेशक लंबी अवधि के लिए निवेश करते है और ट्रेडर शॉर्ट ट्रेड करते है इन दोनों के मार्केट प्रेडिक्ट करने के तरीके अलग – अलग है, हम दोनों के बारे में बात करेंगे।
निवेशक मार्केट को प्रेडिक्ट कैसे करे?
एक निवेशक कंपनी फंडामेंटल के आधार पर गणितिय गणना का उपयोग कर उसके फ्यूचर प्राइस का अनुमान लगा सकता है।
यह अनुमान कंपनी की ग्रोथ, बैलेंस सीट, इनकम स्टेटमेंट आदि के आधार पर लगाया जाता है कि पिछले सालो में कंपनी ने कैसा प्रदर्शन किया है।
अभी हम अलग-अलग डेटा के आधार पर देखते है कि कैसे मार्केट को प्रेडिक्ट किया जा सकता है –
1. FPI, FII और DII के आधार पर
स्टॉक मार्केट तीन प्लेयर्स द्वारा डोमिनेट किया जाता है, FPI, FII और DII. अगर यह स्टॉक मार्केट में खरीद करते है तो इंडेक्स अपसाईड मूवमेंट दिखाता है, वही दूसरी तरफ अगर यह बेचना शुरू करते है तो मार्केट इंडेक्स में गिरावट देखने को मिलती है।
स्टॉक मार्केट में FPI, FII और DII मुकाबले रिटेल ट्रेडर और निवेशकों का ट्रेडिंग वॉल्यूम बहुत कम होता है। इस तरह हम कह सकते है स्टॉक मार्केट को बड़े प्लेयर्स चलाते हैं।
एक निवेशक के रूप अगर आप स्टॉक मार्केट को प्रेडिक्ट करना चाहते है तो किसी भी कंपनी में मौजूदा FPI, FII और DII की गतिविधि पर नजर रखने की जरुरत है कि वह कब खरीद कर रहे और कब बेच रहे है।
इसके आधार पर आप मार्केट को प्रेडिक्ट कर उसमे निवेश करने की योजना बना सकते है।
2. कंपनी फंडामेंटल के आधार पर
एक निवेशक सिर्फ FPI, FII और DII गतिविधि देखकर किसी स्टॉक में निवेश नहीं करता है क्योकि स्टॉक की भविष्य की प्राइस का अनुमान लगाने के लिए कंपनी फंडामेंटल रिसर्च बहुत जरूरी है। अगर कंपनी पिछले सालो में अच्छे रिटर्न देती हुई आ रही है तो हम उम्मीद कर सकते है कि आने वाले समय में भी अच्छे रिटर्न मिलेंगे।
कंपनी के पिछले स्टॉक प्राइस इतिहास को देखे कि इसकी औसत शेयर प्राइस कितनी बढ़ी है और उसी के अनुसार भविष्य के प्राइस का अनुमान लगाया जा सकता है।
इसके साथ ही कंपनी के बैलेंस शीट, इनकम स्टेटमेंट, कैशफ्लो आदि को परखे, जिससे आपको पता लगेगा की कंपनी स्ट्रांग है या नहीं।
अगर कंपनी के फंडामेंटल स्ट्रांग हो तो हम भविष्य में अच्छे रिटर्न की उम्मीद कर सकते है, वही दूसरी तरफ अगर कंपनी के फंडामेंटल स्ट्रांग नहीं है तो हम कह सकते है कि कंपनी भविष्य में अच्छा परफॉर्म नहीं करने वाली है।
3. म्यूच्यूअल फण्ड होल्डिंग के आधार पर
म्यूच्यूअल फंड की ट्रेडिंग गतिविधि उन स्टॉक्स से जुड़ी होती है जिनमे इन्होने निवेश किया हैं। जब भी म्यूच्यूअल फंड मैनेजर किसी स्टॉक को खरीदते या बेचते है तो इसका प्रभाव उन स्टॉक्स के शेयर प्राइस पर पड़ता है।
इसके अलावा म्यूच्यूअल फंड निवेश का साईज भी स्टॉक प्राइस को अफेक्ट करता है। जब म्यूच्यूअल फंड किसी स्टॉक को खरीदता है तो उसकी प्राइस ऊपर जाती है और जब म्यूच्यूअल फंड किसी स्टॉक को बेचता है तो उसकी प्राइस नीचे जाती हैं।
आसान शब्दों में कहे तो ऐसी कोई खबर कि म्यूच्यूअल फंड किसी कंपनी में हिस्सेदारी खरीद रहा है या बेच रहा है उस स्टॉक की प्राइस को ऊपर या नीचे कर सकता है।
4. स्टॉक ट्रेडिंग वॉल्यूम में डिलीवरी प्रतिशत के आधार
बहुत से निवेशक है जो किसी भी स्टॉक में निवेश करने से पहले उसके वॉल्यूम में डिलीवरी प्रतिशत देखते है, जिसमे अगर स्टॉक के वॉल्यूम में डिलीवरी प्रतिशत ज्यादा है तो इसका मतलब हैं कि जितने लोग भी इस स्टॉक को ट्रेड कर रहे है उनमे से बहुत से लोग लॉन्ग टर्म निवेश के लिए खरीद रहे है।
अगर किसी स्टॉक को बहुत से निवेशक लॉन्ग टर्म के लिए खरीद रहे है तो इसका सीधा सा अर्थ निकलता है कि निवेशक उस स्टॉक के भविष्य की प्राइस को लेकर बहुत आशावादी है यानी कि निवेशक को उम्मीद है कि यह स्टॉक भविष्य में अच्छे रिटर्न देने वाला है।
इसमें दो टर्म है जो आपको समझनी है:
- टोटल ट्रेडेड वॉल्यूम – यह दर्शाता है कि टोटल कितनी बार शेयर को ट्रेड किया गया है।
- डिलीवरी क्वांटिटी प्रतिशत – यह दर्शाता है कि टोटल ट्रेडेड शेयरों में से कितने प्रतिशत लोगो ने डिलीवरी में स्टॉक को लिया है।
उदाहरण के लिए:
माना 21 मार्च को रिलायंस शेयर की कुल ट्रेडेड संख्या 80,64,369 शेयर है, जिसमे से डिलीवरी शेयरो की संख्या 50,21,458 है। इसका मतलब यह है कि कुल ट्रेडेड शेयरों मे से 62.2 % प्रतिशत लोग डिलीवरी में खरीद रहे है तो इसका मतलब है कि या तो लोग लॉन्ग टर्म निवेश कर रहे है या पोजिशनल के लिए खरीद रहे है।
5. शेयरहोल्डिंग पैटर्न के आधार पर
अगर किसी स्टॉक में प्रमोटर शेयरहोल्डिंग बढ़ती है तो उस स्टॉक के लिए अच्छा माना जाता है, क्योंकि अगर प्रमोटर किसी कंपनी में अपनी शेयरहोल्डिंग बढ़ा रहे है तो इसका मतलब है कि वह कंपनी की लॉन्ग टर्म ग्रोथ देख पा रहे है।
अगर आप शेयर मार्केट में सक्रीय है तो आपने देखा होगा कि जब भी किसी कंपनी में प्रमोटर अपनी शेयरहोल्डिंग बढ़ाते है तो उसकी प्राइस बढ़ने लगती है।
उदाहरण के लिए:
वेदांता कंपनी के प्रमोटर अनिल अग्रवाल ने दिसंबर 2015 में अपनी शेयरहोल्डिंग 85 रूपये प्रति शेयर पर खरीदकर बढ़ायी थी, कुछ समय बाद प्राइस और नीचे चली गई। लेकिन वर्तमान में वेदांता शेयर प्राइस अपने ऑल टाइम हाई 399 हैं।
अभी आप अंदाजा लगा सकते है वेदांता शेयर प्राइस 85 से 399 पहुंच गया, क्योंकि प्रमोटर को कंपनी पर भरोसा था।
ऊपर दिए गए सभी कांसेप्ट की मदद से आप जान सकते है कि कोई कंपनी भविष्य में कैसा प्रदर्शन करने वाली है या कितना रिटर्न दे सकती है।
ट्रेडर मार्केट को प्रेडिक्ट कैसे करे?
मार्केट में बहुत से लोग ट्रेडिंग करते है लेकिन कुछ ही लोग मार्केट को प्रेडिक्ट कर उससे लाभ अर्जित कर पाते है। अगर आप भी स्टॉक मार्केट को प्रेडिक्ट करने में असमर्थ है तो नीचे आपको कुछ तरीके मिलेंगे, जिनकी मदद से आप भी किसी भी स्टॉक के प्राइस मूवमेंट को प्रेडिक्ट कर सकते हैं।
1. डिमांड और सप्लाई के आधार पर
डिमांड और सप्लाई का कांसेप्ट बहुत पुराना है, जैसे मार्केट में अगर किसी चीज की डिमांड बहुत ज्यादा है और बेचने वाले बहुत कम है तो उसकी कीमत बढ़ जाएगी। ठीक इसी प्रकार अगर कोई चीज मार्केट में बहुत ज्यादा है यानि की सप्लाई ज्यादा है और खरीदने वाले लोग बहुत कम है तो इस स्थिति में उसकी प्राइस कम हो जाएगी।
इसी प्रकार स्टॉक मार्केट में अगर किसी शेयर की डिमांड बढ़ती है तो उसकी प्राइस भी बढ़ती है, इसी तरह अगर किसी स्टॉक की सप्लाई बढ़ती है तो उसकी प्राइस कम होती है। अगर आप इस कांसेप्ट को समझ जाते है तो आप मार्केट को बेहतर प्रेडिक्ट कर सकते है।
2. चार्ट पैटर्न के आधार पर
टेक्निकल एनालिसिस में प्राइस के पिछले डेटा का अध्ययन किया जाता है और यह सारी प्रक्रिया चार्ट पर होती है। कोई भी ट्रेडर चार्ट का अध्ययन करके भविष्य की प्राइस का अनुमान लगा सकता है।
ट्रेडिंग पैटर्न में दो तरह के चार्ट होते है, बुलिश पैटर्न और बेयरिश पैटर्न। बुलिश पैटर्न यह समझने में मदद करता है कि स्टॉक की प्राइस कितनी ऊपर तक जा सकती है। दूसरी ओर बेयरिश पैटर्न दर्शाता है कि स्टॉक की प्राइस कितना नीचे गिर सकती है।
टेक्निकल एनालिसिस का मुख्य उद्देश्य स्टॉक का विश्लेषण कर उसके भविष्य के प्राइस का अनुमान लगाना है।
टेक्निकल एनालिसिस में विभिन्न तरह के कैंडलस्टिक चार्ट पैटर्न होते है, जिनकी मदद से स्टॉक के प्राइस मूवमेंट को प्रेडिक्ट किया जा सकता हैं।
बुलिश चार्ट पैटर्न :- बुलिश फ्लैग पैटर्न, राउंडिंग बॉटम, कप एंड हैंडल पैटर्न, फॉलिंग वैज आदि पैटर्न है जो कि एक बुलिश मूवमेंट का संकेत देते है। अगर किसी चार्ट में यह पैटर्न बन रहे है तो समझ जाओ कि मार्केट ऊपर की ओर मूवमेंट दिखानी वाली है।
बेयरिश चार्ट पैटर्न :- बेयरिश फ्लैग पैटर्न, हेड एंड शोल्डर्स पैटर्न, डबल टॉप पैटर्न, राइजिंग वैज आदि पैटर्न है जो कि एक बेयरिश मूवमेंट का संकेत देते है। अगर किसी चार्ट में यह पैटर्न बन रहे है तो इसका मतलब है कि मार्केट नीचे की ओर मूवमेंट दिखानी वाली है।
3. ट्रेंड के आधार पर
स्टॉक मार्केट में कहा जाता है कि ट्रेंड आपका दोस्त है, इसका मतलब है कि हमेशा ट्रेंड के साथ चले, जैसे अगर मार्केट अपट्रेंड में है तो सिर्फ लॉन्ग ट्रेड को प्लान करे, वही दूसरी तरफ अगर मार्केट डाउन ट्रेंड में है तो शॉर्ट ट्रेड को प्लान करे।
जब हम इंट्राडे ट्रेडिंग या कोई शार्ट टर्म ट्रेड करते है तो ट्रेंड हमें यह समझने में मदद करता है कि प्राइस अभी और ऊपर या नीचे जा सकती है या रिवर्स करने वाली है। इसलिए अगर आप स्टॉक मार्केट को प्रेडिक्ट करना चाहते है तो ट्रेंड को समझना बहुत ही महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
अगर स्टॉक अपट्रेंड के समय अपने पिछले रेजिस्टेंस को ब्रेक करता है तो इस स्टॉक से एक अच्छे मुनाफे कमाने का मौका प्रदान करता है।
एक ट्रेंड में चल रहे स्टॉक को उसके पिछले सपोर्ट और रेजिस्टेंस के आधार पर प्रेडिक्ट किया जा सकता है।
उदाहरण के लिए मान लेते है की आप स्विंग ट्रेडिंग के लिए एक स्टॉक देख रहे है जिसका करंट प्राइस 1080 रुपये है, उसका सपोर्ट 1000 और पिछले रेजिस्टेंस 1200 है तो ये स्टॉक अगर अपट्रेंड में है तो मैक्सिमम आप 1200 तक के प्राइस तक बढ़ने की उम्मीद कर सकते है।
अगर स्टॉक अपने सपोर्ट या रेजिस्टेंस को ब्रेक करता है तो उसके अगले प्राइस या लेवल को प्रेडिक्ट करना थोड़ा चुनोतीपूर्ण हो सकता है।
4. इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी के आधार पर
मार्केट में वोलैटिलिटी के बारे में आपने सुना होगा जो आपको मौजूदा मार्केट में अस्थिरता की जानकारी देकर रिस्क और रिवॉर्ड की गणना करने में मदद करती है, लेकिन अगर आप भविष्य के मूल्य की अस्थिरता जानना चाहते है तो उसके लिए इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी (IV in option chain in hindi) का उपयोग किया जा सकता है।
इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी से आप ऑप्शन प्रीमियम के साथ स्टॉक प्राइस में आने वाले उतार-चढ़ाव को समझ सकते है और उसके आधार पर जोखिमों का आंकलन कर ट्रेड पोजीशन ले सकते है।
इसकी गणना करना बहुत आसान है। अगर ऑप्शन चैन में इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी की वैल्यू 10% है तो इसका मतलब भविष्य में स्टॉक का दाम 10% तक बढ़ या घट सकता है।
साथ ही मार्केट के इवेंट्स, इलेक्शन, किसी भी तरह का समाचार इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी को बहुत तेज़ी से बढ़ा देता है जो ट्रेडर के लिए लाभ कमाने का एक मौका बनता है।
5. PCR के आधार पर
ऑप्शन ट्रेडिंग में इस्तेमाल होने वाला एक महत्वपूर्ण कारक जो मार्केट में ट्रेडर की भावना के आधार पर आने वाले ट्रेंड की जानकारी प्रदान करता है, वह है PCR, यानी की पुट-कॉल रेश्यो।
तो PCR kaise nikale?
अब क्योंकि ये एक तरह का रेश्यो है तो इसके लिए दो सामान डाटा की आपस में तुलना करनी होती है। इसकी गणना करने के लिए ऑप्शन चेन (what is option chain in hindi) में ओपन इंटरेस्ट और वॉल्यूम डाटा का उपयोग किया जाता है।
OI-PCR के लिए पुट ऑप्शन के ओपन इंटरेस्ट और कॉल ऑप्शन के ओपन इंटरेस्ट को आपस में भाग किया जाता है। अगर PCR की वैल्यू 1 से ज़्यादा हो तो ये मार्केट में बुलिश और कम होने पर बेयरिश ट्रेंड की जानकारी प्रदान करता है।
निष्कर्ष
हमें उम्मीद है कि Stock Market Prediction in Hindi लेख के माध्यम से आप मार्केट प्रेडिक्शन के बारे में समझ गए होंगे, फिर भी जैसा कि हमने पहले बताया था, कि मार्केट को कोई भी पूरी तरह से प्रेडिक्ट नहीं कर सकता है।
हम सिर्फ डेटा के आधार पर अनुमान लगा सकते है, बाकि मार्केट में कब क्या हो जाए कोइ नहीं जानता है।
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